प्रिय पाठक मित्रो,
मेरा यह उपन्यास इस ब्लॉग हर हफ्ते मे सिर्फ एक चेप्टर रखता जिसे आप लोगोने खूब सराहा है, इस के लिए आप सब का दिल से धन्यवाद। आज एक नया चेप्टर रखता हु, आशा रखता हु की आप इसे भी सराहेंगे। नए पाठक मेरी पिछली पोस्ट मे बीती कहानी पढ़ शकते है।
अब आगे की कहानी.........
3॰ तांत्रिक
उतावला हो गया
तांत्रिक एकदम
शांत हो गया था, दर असल वह सच में शांत नहीं
था बल्कि अपनी पूजा/ साधना में डूबा हुआ था। उसका बूढ़ा और कमजोर जिस्म उसका साथ नहीं दे रहा था फिर भी
उसने अपने सारे चेलो को पर अलग अलग कार्य
देकर किसी दूर की जगह पर भेज दिया
था। उसे पता था की उसकी साधना पूर्ण होने पर उसे मिलने वाला
प्रसाद का छोटा सा अंश भी अगर उसके चेलो को मिल
गया तो वोह भी उसकी तरह ही शक्तिशाली बन जाएंगे। इसलिए उसने सारे चेलो को
को भेज दिया था, बाकी बचा था सिर्फ राजा विक्रम सिंह, उसकी तो इस पूजा मे खास
जरूरत। अभी बस सिर्फ 4 दिन ही बाकी थे
तांत्रिक को अमर होने में, राजा विक्रम
सिंह के जिस्म में प्रवेशकर खुद इस राज्य का राजा बनने
मे।
राजा भी तांत्रिक
को ज्यादा सत्ता पाने के लिए और तांत्रिक की तरह ही ज्यादा से ज्यादा शक्तिशाली
बनने के लिए कई सारे सवाल किया करता था। पहले तो तांत्रिक के सारे
शिष्य उसके सवाल का जवाब देते थे, लेकिन अकेले ही शक्ति पाने की लालच मे तंत्रिकने सब चेलो को दूर भेज दिया था। अब
सिर्फ तांत्रिक और राजा ही बचे थे इसलिए राजा सारे सवाल
अब तांत्रिक को किया करता था, इससे तांत्रिक अपनी
साधना मे पूरी तरह से मन नहीं लगा पा रहा था। तांत्रिक अब राजा से, राजा के सवालो से ऊब गया था, उसने सोचा कि अब राजा
की कोई जरूरत तो है नहीं और
अमावस्या के पहले उसे अपनी साधना भी पूरी करनी थी, उसका बूढ़ा शरीर उसका
साथ नहीं दे रहा
था और राजा उसे बार-बार
परेशान कर रहा था तो क्यू न राजा को मार कर
जवान और शक्तिशाली शरीर का फायदा उठा लिया जाए, इससे वह उसकी साधना समय पर पूर्ण कर सकता हैं। वैसे भी चार दिन के बाद तो वह राजा को मारने ही वाला है तो उसे चार दिन तक बर्दाश्त क्यों करे ।
तांत्रिक ने अपने
विचार को अमल में लाने के लिए राजा से कहा कि आज
संध्याकाल को नदी के तट पर मैं आपको परकाया प्रवेश की विद्या सिखाऊंगा। इस विध्या से आप कुछ भी कर सकते हो, सारे राजाओं पर राज कर सकते हो, दूसरे राजा के जिस्म मे प्रवेश कर के उसकी सेना को अपने
काबू में कर सकते हो। राजा बहुत खुश हो गया। संध्या समय पर राजा और तांत्रिक दोनों रोहिणी नदी के तट पर पहुंच गए। वक्त हो चुका था राजा बार-बार पूछ रहा था कब शिखाओगे, कब शिखाओगे, कब शिखाओगे? राजा का
उसका उतावलापन देखकर तांत्रिक मन ही मन हस रहा था
क्योकि उसे पता था की राजा कुछ सीखने के लिए नहीं, मरने के लिए
उतावला हो रहा है।
तांत्रिक ने राजा
से कहा हे
राजा, जाओ एक तोता मार के लाओ।
राजा तो था ही शिकारी कुछ ही पल
में वह एक मरा हुआ तोता लेकर हाजिर हो
गया। आज वह बहुत ही खुश
था, और खुश होना भी चाहिए उसे न मानने जैसी विध्या शीखने को मिल रही
थी। वह बहुत ही उत्साहित था, लेकिन उसे पता
नहीं था की उसका जीवन अब समाप्त होने जा रहा है।
तांत्रिक ने राजा को परकाया प्रवेश की अमूल्य विद्या शीखाई और अपनी
विध्या से खुद उस मरे हुए तोते
के शरीर मे प्रवेश कर लिया, और वहीं से राजा
से कहा की अब आप मेरे शरीर मे प्रवेश करो जिससे
मुझे पता चले की आप मेरी शिखाई हुई विध्या
को सही तरीके से शिख पाए हो।
राजा विक्रम सिंह
बहुत ही उत्साहित थे, उन्होने तांत्रिक के बताए हुए रास्ते से अपना शरीर छोड़कर तांत्रिक के शरीर में प्रवेश कर लिया। वो मान ही नहीं पर रहे थे की वह किसी दूसरे शरीर
मे है और उनका शरीर उनके सामने निश्चेत पड़ा है। तभी मरे हुए तोते के शरीर को छोड़कर तांत्रिक ने राजा के शरीर मे प्रवेश किया और राजा
की तलवार उठाई। तांत्रिक के निर्बल शरीर में रहा राजा कुछ सोचे उससे पहले तो बलवान शरीर में रहे तांत्रिक ने तलवार चलाई, खून की धारा बहने लगी। बूढ़े और अशक्त जिस्म के साथ राजा विक्रम सिंह भी रामशरण हो गए।
राजा विक्रम सिंह
के जिस्म मे दाखिल हुआ तांत्रिक अब खुद इस मजबूत जिस्म का
मालिक बन चुका था। उसने अपना दुर्बल शरीर नदी के तट
पर ही छोड़ दिया और अपनी गुफा में चला गया। राजा का परिधान
निकाल कर अपना तांत्रिक पोशाक पहन लिया फिर अपनी साधना में लीन हो
गया।
अमावस को 2 दिन की देरी थी और अचानक महारानी पंडित के पास दौड़े दौड़े पहुंचे। उनके चेहरे पर खुशी की झलक रही थी। वो पंडित से कहने लगी की हमारी परेशानी अब दूर
हो चुकी है। तांत्रिक की हत्या हो चुकी है, अब आपको बलिदान देने की जरूरत नहीं पड़ेगी, हमारा राज्य अब उस शयतान
के सिकंजे से मुक्त हो चुका है।
हकीकत यह थी कि
नैनपुर के लोगों ने तांत्रिक का मरा हुआ शरीर रोहिणी नदी के तट पर देखा था और उन्होंने ही महारानी तक यह बात पहुंचाई थी। प्रजा पर आई हुई आपत्ति दूर देख कर महारानी बहुत खुश हो गए थे।
पंडित मंगत राम
की समझ में कुछ न आया, उन्हे पता था कि
तांत्रिक जिस्म से निर्बल जरूर था पर वह अपनी विद्या से अति बलवान था। ऐसे तांत्रिक को कोई मार दे, यह मुमकिन ही नहीं था। गिरी शिखर को भी पल में धूल बना देने वाली
ताकत के मालिक की हत्या वोह भी रोहिणी नदी के तट पर, मुमकिन ही नहीं है। वह प्रश्न भरी नजर से महारानी को देखने लगे फिर अपनी आंखे बंध करके चुपचाप ध्यान मे बैठ गए, वो जानना चाहते थे कि हकीकत क्या है?
महारानी पंडित के
साथ उधर ही बैठे रहे। वह बहुत खुश थे और बहुत प्रसन्नता से पंडित को ध्यान करते हुए देख रहे थे। पंडित के चेहरे पर कोई भी रेखा नहीं थी। पंडित की यह रहस्यमयी चुप्पी से महारानी
परेशान हो गए, एक तरफ वो इतनी खुशी के
समाचार लेकर आयी है और पंडित के चेहरे पर कोई भी भाव नहीं आ रहे।
अचानक पंडित की बंद आंखो
के पास हलचल हुई और वो जोर से “नहीं” चिल्लाए । उसके साथ ही उन्होंने
अपनी आंखें खोल दी, वोह काफी परेशान दिख
रहे थे तो महारानी ने पूछ लिया की पंडित जी क्या हो गया? आप इतने परेशान क्यों हो? पंडित कुछ बताने की अवस्था में नहीं थे, कुछ पल तो उनकी समझ में नहीं आया कि वो कैसे बताएं। थोड़ी देर के बाद वो थोड़े स्वस्थ हुए तो तक उन्होंने
महारानी को सच्चाई से अवगत कराया।
सुख के सागर से
महारानी दुख की खाई में जा गिरे । तांत्रिक ने
उनका सुहाग उजाड़ दिया था। अब महारानी और भी कठिन परिस्थिति में थे, न वोह एक सुहागन के रूप में जी सकते थे नहीं वोह एक विधवा के रूप मे मर शकते थे। थोड़ी देर तक मातम मनाने के बाद वो स्वस्थ हो गए उन्होने अपने आंसू पोंछे और पंडित से कहा पंडितजी अब तो इस पिशाच को किसी भी कीमत पर
मारना ही होगा।
इस लड़ाई में राजा विकरामसिंह का बलिदान लिया गया था, उसी राजा के जिस्म मे रहनेवाले तांत्रिक को मारना था, फिर भी महारानी लड़ने को
तैयार थी। पंडित को लगा के उनका बलिदान जरूर सफल होगा, वो यह लड़ाई जरूर जीत जाएंगे।
आज अमावस थी। तांत्रिक के लिए उसका स्वर्णपल आने की तैयारी की का दिन था। बस यह दिन ढल
जाए और उसकी यह रात्रि की साधना संपूर्ण हो जाए फिर वो अमर हो जाएगा। पूरी पृथ्वी पर किसी के पास उसे हराने की ताकत नहीं होगी। इस विश्व का, एक बलवान शरीर का और महारानी का भी वोही मालिक बन जाएगा। बस आज का बली चढ़ाना बाकी था।
उसे राजा विक्रम
सिंह की याद आ गई। अगर वह हाजिर रहता तो
तुरंत ही बलि ले आता, और तांत्रिक
की साधना मे कोई परेशानी नहीं आती। अब बली ढूंढने के लिए
उससे ही उठना पड़ेगा, उसे अफसोस हुआ की राजा को जल्दी मार कर उससे गलती हुई है पर अब कुछ नहीं हो सकता
था। वह अपनी साधना छोड़ कर बलि ढूँढने के लिए अपनी गुफा से बाहर निकला। काफी वक्त के बाद वो बलि ढूँढने निकला था, आज का बलि तो
उसके लिए खास था, वो चाहता था
की यह बलि कोई जवान और कंवारी लड़की ही हो जिस से उसकी देवी अति प्रसन्न हो
जाएगी।
दोस्तो आपका प्यार ही
मेरा प्रोत्साहन है, यह उपन्यास दो महीनो मे
समाप्त होगा उसके बाद बृहन्नला की सवारी आएगी। ओर भी कई सारी कहानिया है जो अभी पूरी
तरह से लिखी नहीं गई। यह सारी कहानिया मे आपके
लिए जरूर से लेकर आऊँगा।
कृपया शेर, फॉलो और टिप्पणी करना न भूले।
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“जांबू” (शैलेष कुमार मोतीलाल
परमार )
મો. 09898104295 / 09428409469
E-mail – shailstn@gmail.com
ISBN 9780463875544.
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